स्कूल में मेरा पहला दिन हिंदी निबंध First Day of My School Essay in Hindi

First Day of My School Essay in Hindi: एक हाथ में पट्टी लिए, जेब में पेन डाले और एक हाथ में माता, पिता या बड़े भैया की अँगुली पकड़े छह सात वर्ष का बालक जब पहले-पहल स्कूल जाता है तब सचमुच यह उसके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना बन जाती है। उस समय मेरी उम्र लगभग छ: वर्ष की थी, जब एक दिन मैं अपने पिताजी के साथ स्कूल में दाखिल होने के लिए चला था। अभी तक मेरा जीवन खाने-पीने और खेलने-कूदने में ही गुजरा था, इसलिए किसी तरह के बंधन से मेरा परिचय नहीं हुआ था।

स्कूल में मेरा पहला दिन पर हिंदी में निबंध First Day of My School Essay in Hindi

स्कूल में मेरा पहला दिन पर हिंदी में निबंध First Day of My School Essay in Hindi

प्रिन्सिपल साहब से भेंट और कक्षा में प्रवेश

पिताजी मुझे सबसे पहले स्कूल के मुख्याध्यापकजी के पास ले गए। मैंने देखा कि एक बड़ी मेज पास कुर्सी पर एक महोदय काला चश्मा पहने बैठे हैं। मैंने उनको प्रमाण किया। स्कूल के रजिस्टर में मेरा नाम लिख दिया गया। उसके बाद पिताजी मुझे वर्ग-शिक्षक के पास ले गए। वर्ग-शिक्षक मेरी ओर देखकर मुस्कराए और उन्होंने मुझे पहली बेंच पर बैठने का आदेश दिया। शाम को मैं तुम्हें लेने आऊँगा यह कहकर मेरे पिताजी चले गए।

पढ़ाई

स्कूल में मेरे लिए सब कुछ नया था। कक्षा के सभी लड़कों की आँखें मुझ पर ही लगी हुई थीं। यद्यपि स्वभाव से मैं चपल था, फिर भी उस समय किसी से बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। शिक्षक सामने के काले तख्ते पर गिनती लिखते थे और हर लड़के से पूछते थे। न बतानेवाले को खड़ा रखा जाता था। मैं मन ही मन डर रहा था। धीरे-धीरे मेरी बारी आई। पर शिक्षक के पूछते ही मैंने झट से ठीक उत्तर दे दिया। उन्होंने मुझे शाबाशी दी।

एक लड़के से मित्रता

दोपहर की छुट्टी में एक लड़के ने आकर बड़े स्नेह से मेरा नाम पूछा। उसने ही मुझे पानी पीने का कमरा और शौचालय दिखाया। वह उसी दिन मेरा मित्र बन गया। वह मेरी कक्षा का मानीटर अशोक था।

शाम का समय

शाम तक पढ़ाई होती रही। आखिरी घंटे में शिक्षक महोदय ने एक कहानी सुनाई। वह मुझे बड़ी अच्छी लगी । पर मन में यही हो रहा था कि कब छुट्टी हो और कब घर भागू। भूख भी बहुत जोर से लगी थी। समय होते ही टन्-टन् करके घंटी बजी। लड़के उठ-उठकर भागने लगे। अशोक के साथ मैं भी बाहर निकला। पिताजी दरवाजे पर मेरा इंतजार कर रहे थे। मैंने उनसे अशोक का परिचय कराया। घर पहुँचते ही माताजी ने मुझे चूमकर गले लगा लिया।

महत्त्व

इस प्रकार स्कूल में मेरे विद्यार्थी जीवन का श्रीगणेश हुआ। यह मेरे जीवन का वह शुभ दिन था, जब मैंने स्कूल में जाकर अपने सामूहिक जीवन का प्रारंभ किया और सहयोग तथा मित्रता का पहला पाठ सीखा।


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